Aag Jalni Chahiye
आग जलनी चाहिए
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
Today every wall must move like curtains
But promise is, the foundation shakes –deep.
Each road, each lane, each city, each village
Shall have dead bodies move: waving hands to keep
I don’t only aim to create turmoil
The effort is, changed situation to see
If not in my heart, your heart shall behold
Wherever the fire be, but for sure it must be.
Translation of Aag Jalni Chahia by dushant kumar
It's amazing
pa998877@gmail.com
उनके सर करके वतन हम यूँही सोते रहे
दर्द अपना था मगर उनको क्या था वास्ता
वो चोट करते गए, हम यूँही सहते रहे
हम बड़े ही जोश से उनको रहनुमा माना किये
वो हुक्मरान बनकर, मगर हम पर सितम करते रहे
उनकी तरकश मे जो तीर थे, वो थे हमारे वास्ते
वो शौक ऐ दिल करते गए हम जख्म ऐ दिल होते रहे
सौंप डाला घर उन्हें रौशनी के वास्ते
वो जलाके घर मेरा आतिशी करते रहे
उनका दौर ऐ जाम था, अपना क़त्ल ऐ आम था
उनकी ख़ुशी के लिए हम खुदख़ुशी करते रहे
तुझको कसम है " अनाम' तू चुप ना अब बैठना
अपना हक़ पाने की खातिर तू सदा लड़ता रहे
सारी कोशिश है की ये सूरत बदलनी चाहिए । ।
गज़ल कितनी सशक्त विधा हो सकती है- ये हम दुष्यंत जी के संग्रह 'साये मे धूप' को पढ़ने के बाद ही जान सके। उससे पहले गज़ल सुरा सुंदरी तक ही सीमित थी।
सिर्फ नजरिये का ही तो फर्क है, वरना
किसी ने बादलों मे छलछलाते जाम भी देखे।
किसी को जिस्म भूखे और प्यासे भी नजर आए। ।
इतनी अच्छी गज़लें दोबारा पढ़ाने के लिए आप का तहे दिल से शुक्रिया।
i think one day issi poem se desh badal jayega!!!!!!!!!!!!!!!!!
bharastachar mit jayega!!!!!!!!!!!!
Jab Me 5th me thaaa tab ye kavita yaad ki thi aur aaj me 22 year ka ho gaya thuu aur aaj Bhi Muze Ye Kavita Yaad hai
yeh kavita bahut aachi hai muzhe bohot aachi lagi
thanks
Jo kavita Aag jalane ke liye likhi gayi vah keval Hradayo ko hi sparsh kar payi .....Kintu Isme apki koshish mein koi kami nahi hai ...yaha to sino mein chingariya hi nahi hai to aag kaha se jalegi ....Lekin muze vishvaas hai ki ek din yahi kavita jarur sino mein aag lagaegi ..
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bahu khob sorat...................................????
and i am really happy there is people like you who deeply thinking about contemporary senario and expressing it in such a heart touching way.............
i am simply become a fan of urs............sir ji.........n also suggest my friends to read these valuable......poems from u.
thank u
ur fan
AB HAR GALI-KOOCHE PAR DHARM AUR JAAT KI RAAKH MILNI CHAHIYE
Jat Pat or Aarakshan BHed Bhav sabhi mitna chahiye.
and like a burning inspiration guide us to ACT....
Mera Maksad h k Tasvir Badalni Chaahiye..
Thanks to Dushyant Ji !!!
Ek joshili si kavita..
NEERAJ
sirf hungaama khada karna, mera maqsad nahi.........
what a powerful line..........
just listen the song frm "HALLA BOL" with the same lyrics.....of disyant kumar........by sukhvindar singh
one of the most enerjetic poem......by disyant kumar.
Man gaye
Rongte khade kar dene walee panktiaya hai sahab great
Aag sach mein lagi ya bas hansi mein ud gayi.....?????