Ek Aashirvaad

एक आशीर्वाद
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।

हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

Category: hindi-poems

Comments

  • Cazare Praid
    25 Nov 11
    I read the poem and I have to admit that it sound very good, the lyrics are beautiful and the story is really good.
  • Rhythum
    17 Sep 09
    Very nice poem.....
    Thanx a lot.......
  • manohar
    22 Aug 10
    its an realistic poem.it is complete it sels.it says a lot in circle
  • isht vibhu
    25 Dec 08
    <b>

    मेरी प्रगति या अगति का
    यह मापदण्ड बदलो तुम,
    जुए के पत्ते सा
    मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
    मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
    कोपलें उग रही हैं,
    पत्तियाँ झड़ रही हैं,
    मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
    लड़ता हुआ
    नयी राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।

    अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
    मेरे बाज़ू टूट गए,
    मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,
    मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
    या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,
    तो मुझे पराजित मत मानना,
    समझना –
    तब और भी बड़े पैमाने पर
    मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,
    मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
    एक बार और
    शक्ति आज़माने को
    धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
    मचल रही होंगी ।
    एक और अवसर की प्रतीक्षा में
    मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।

    ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
    ये मुझको उकसाते हैं ।
    पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
    मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
    मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
    क़सम देती हैं ।
    कुछ हो अब, तय है –
    मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,
    पत्थरों के सीने में
    प्रतिध्वनि जगाते हुए
    परिचित उन राहों में एक बार
    विजय-गीत गाते हुए जाना है –
    जिनमें मैं हार चुका हूँ ।

    मेरी प्रगति या अगति का
    यह मापदण्ड बदलो तुम
    मैं अभी अनिश्चित हूँ ।</b>
    ----------------------
    <i>दुश्यन्त कुमार पुनः
    सादर आपके प्रयास की विनम्र सराहना में</i>
  • Krishna kant
    30 Jul 13
    Incredible..!
    Yeh kavita kisi b padhne wale ko haar se ladna sikha sakti h..
  • Krishna kant
    30 Jul 13
    Incredible..!
    Yeh kavita kisi b padhne wale ko haar se ladna sikha sakti h..