Ek Bhi Aanshu Na Kar Bekar

एक भी आँसू न कर बेकार
- रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi)

एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!

पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है

कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं

हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में

हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!

Category: hindi-poems

Comments

  • rinki jain
    07 Sep 13
    excellent poetry
    excellent poem
    i like it
  • Paras
    23 Jun 13
    wow that's what a like a poetry
  • Ananya
    29 Nov 11
    A combination of 26 alphabets can't express our poem
  • प्रणव गुप्ता
    12 Oct 11
    मेरे अंतस को हिला दिया...
    में अभिभूत हूँ इसे पढकर.. क्या कोई ऐसा भी लिख सकता है..
    इतने सरल शब्दों में जीवन का सच बांधकर रख दिया है...
    महान रचना.. कालजयी रचना... मार्मिक रचना.... जीवंत रचना.....

  • Anonymous
    17 Feb 11
    toooooo goodddddd
  • sanjay
    02 Apr 10
    bahut sunder, himmat de gayee ye panktiyan, is rachna ke kavi ko naman hai hamara
  • deepika
    28 Aug 10
    awesome 1....thanks 4 putting dis....!
  • PAYAL VERMA
    23 Dec 09
    DEEP THINKING
  • himanshu
    05 Jul 09
    its a wonderful, tremendous and meaningful poem.
    Isme use kiye gaye ek-2 word ka apna alag hi
    mahatav hai.. thnx for this poem
  • Mamta
    13 Mar 09
    Excellent poetry.............
  • RAGNI
    17 May 13
    vastawikta isi ka nan hai