Mashal
In tribute to people who have lost their lives in Mumbai Attacks - an old poem by Mahendra Bhatnagar.
मशाल
- महेन्द्र भटनागर (Mahendra Bhatnagar)
बिखर गये हैं जिन्दगी के तार-तार
रुद्ध-द्वार, बद्ध हैं चरण
खुल नहीं रहे नयन
क्योंकि कर रहा है व्यंग्य
बार-बार देखकर गगन !
भंग राग-लय सभी
बुझ रही है जिन्दगी की आग भी
आ रहा है दौड़ता हुआ
अपार अंधकार
आज तो बरस रहा है विश्व में
धुआँ, धुआँ !
शक्ति लौह के समान ले
प्रहार सह सकेगा जो
जी सकेगा वह
समाज वह —
एकता की शृंखला में बद्ध
स्नेह-प्यार-भाव से हरा-भरा
लड़ सकेगा आँधियों से जूझ !
नवीन ज्योति की मशाल
आज तो गली-गली में जल रही
अंधकार छिन्न हो रहा
अधीर-त्रस्त विश्व को उबारने
अभ्रांत गूँजता अमोघ स्वर
सरोष उठ रहा है बिम्ब-सा
मनुष्य का सशक्त सर !
Saari kavitaayen bahut hi acchi hai.
PLEASE ! Shiv Mangal Singh SUMAN ki aur kavitaayen bhi daaliye.
THANKS