Tumhare Saath Rehkar
तुम्हारे साथ रहकर
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गये हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक की घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।
यह कविता एक ऐसी जदूई सुंदरता से परिपूर्ण है कि मैं इसे पढ़ते समय इसके सहज प्रवाह का अभिन्न अंग बन जाता हूँ. एक दशक पहले कई बार पढ़ने के बाद, आज जब सर्वेश दयाल सक्सेना नाम पढ़ा तो मन में उन शब्दों की सरसराहट महसूस हूई; और फिर बह निकला इन के साथ.
Ye kavita sambhawnao ko ek pratibimb hai, jo sath sath uske aseem aur anant hone ka parichayak bhi hai. सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ji ne kinte saral roop se kinti mahaan bhaav ka sajeev chitran kiya hai.
Aise kavi apni kavita ke sath hamesha amar rahte hain. bahut bahut dhanyawaad.
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है !