Hindi Poems of Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद)

Here are a set of hindi poems by Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद).

Ma Kali (काली माँ)- Hindi Poem by Swami Vivekananda

छिप गये तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर गहरा अंधेरा,
गरजते तूफान में, शत

लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से–द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके ।

शोर से आ मिला सागर,
शिखर लहरों के पलटते
उठ रहे हैं कृष्ण नभ का
स्पर्श करने के लिए द्रुत,

किरण जैसे अमंगल की
हर तरफ से खोलती है
मृत्यु-छायाएँ सहस्रों,
देहवाली घनी काली ।

आधिन्याधि बिखेग्ती, ऐ
नाचती पागल हुलसकर
आ, जननि, आ जननि, आ, आ!
नाम है आतंक तेरा,

मृत्यु-तेरे श्वास में है,
चरण उठकर सर्वदा को
विश्व एक मिटा रहा है,
समय तू है, सर्वनाशिनि,

आ, जननि, आ, जननि, आ, आ!
साहसी, जो चाहता है
दुःख, मिल जाना मरण से,
नाश की गति नाचता है,
माँ उसीके पास आयी ।

सागर के वक्ष पर - Hindi Poem by Swami Vivekananda

नील आकाश में बहते हैं मेघदल,
श्वेत कृष्ण बहुरंग,
तारतम्य उनमें तारल्य का दीखता,
पीत भानु-मांगता है विदा,
जलद रागछटा दिखलाते ।
बहती है अपने ही मन से समीर,
गठन करता प्रभंजन,
गढ़ क्षण में ही, दूसरे क्षण में मिटता है,
कितने ही तरह के सत्य जो असम्भव हैं -
जड़ जीव, वर्ण तथा रूप और भाव बहु ।
आती वह तुलाराशि जैसी,
फिर बाद ही लखो महानाग,
देखो विक्रम दिखाता सिंह,
लखो युगल प्रेमियों को,
किन्त मिल जाते सब
अन्त में आकाश में ।
नीचे सिन्धु गाता बहु तान,
महीमान किंतु नहीं वह,
भारत, तुम्हारी अम्बुराशि विख्यात है,
रूप-राग जलमय हो जाते हैं,
गाते हैं यहाँ किन्तु
करते नहीं गर्जन।

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