Rabindranath Tagore Poems in Hindi (रवीन्द्रनाथ टैगोर कविताएँ)

रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) is one of the India's most loved poet. He became the first Indian to Nobel Prize in Literature in 1913. Tagore has a unique distiction of writing national anthems of two countries - India's Jana Gana Mana and Bangladesh's Amar Shonar Bangla. Here we present a collection of his hindi poems. We will go on adding more to this collection of tagore poems in ...

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Hindi Poems of Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद)

Here are a set of hindi poems by Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानंद).

Ma Kali (काली माँ)- Hindi Poem by Swami Vivekananda

छिप गये तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर गहरा अंधेरा,
गरजते तूफान में, शत

लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से–द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके ।

शोर से आ मिला सागर,
शिखर लहरों के पलटते
उठ रहे हैं कृष्ण नभ का
स्पर्श करने के लिए द्रुत,

किरण जैसे ...

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Holi Poem by Harivansh Rai Bachchan

होली (Holi)
- हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)

यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज ...

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Mein Hu Unke Saath Khadi Jo Seedhi Rakhte Apni Reedh

मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
- हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)

कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार
जिनकी जिह्वा पर होता है, उनके अंतर का अंगार...

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Veeron Ka Kaisa Ho Basant - Hindi Poem by Subhadra Kumari Chauhan

वीरों का कैसा हो बसंत
- सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan)

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो बसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर...

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Subhadra Kumari Chauhan Poems in Hindi (सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी कविता)

Subhadra Kumari Chauhan (सुभद्रा कुमारी चौहान) was a famous hindi poet who achieved tremendous fame for her poem 'Khoob Ladi Murdani Woh Toh Jhansi Wali Rani Thi'. Subhadra ji was born on Aug 16th 1904 in Nihalpur village in Allahabad, Uttar Pradesh. She died on Feb 15, 1948. She published two poetry collection and 3 story collections.

Her biography titled 'Mila Tej se Tej' (मिला तेज से तेज) was written by her daughter Sudha Chauhan.

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Rani Padmini Gora Badal Poem by Narendra Mishr

पद्मिनी गोरा बादल
- नरेंद्र मिश्र (Narendra Mishr)

Padmini Gora Badal is an amazing poem in hindi by Narendra Mishr. It describes the bravery of Rajput warriors Gora and Badal who rescue Chittor Kind Ratan Singh who has been captured by Alauddin Khilji.

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Desh Kagaz Par Bana Naksha Nahi Hota - Sarveshwar Dayal Saxena

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।

देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव...

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Hindi Poems for Kids - Bal Kavita

Kids of all ages love poems due to their rhythmic nature and more so if it is in their mother tongue. Hindi has a rich tradition of beautiful kid poems (poems for children or bal kavitas). It is common to find even small kids reciting hindi poem (bal kavita) very enthusiastically.

Here is a collection of popular and famous hindi poems for kids and children.

  • [बढ़े चलो (Badhe Chalo)](/poems/...

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Surya Dhaltha Hi Nahi Hai - Ramdarsh Mishra

सूर्य ढलता ही नहीं है
- रामदरश मिश्र

चाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं है
दोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है!

आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों से
बंद अपने में अकेले, दूर सारी हलचलों से
हैं जलाए जा रहे बिन तेल का दीपक निरन्तर
चिड़चिड़ाकर कह रहे- 'कम्बख़्त,जलता ही नहीं है!'

बदलियाँ घिरतीं, हवाएँ काँपती, रोता अंधेरा
लोग गिरते, टूटते हैं, खोजते फिरते बसेरा
किन्तु रह-रहकर सफ़र में...

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